देवी
देवी
तू देवी है,
तू जननी है।
जननी है इस धरती की,
जननी है उस लालिमा की,
जो आई है रंग लाल से,
जो मिला है तुझे श्री गोपाल से।
तूने जो जन्म लिया,
वस्त्र लाल हमने सिया।
धरती पर सूर्य की लालिमा छाई है,
घर हमारे "पुत्री" जो आई है।
फिर उम्र का वह पड़ाव आया ,
जहाँ लहू ने तेरे तुझे भिन्न बनाया।
लहू लाया था फिर लाल,
भविष्य में देने तुझे एक बाल।
फिर से मंदिर की ज्योत जगाई है,
हमारी पुत्री ने "स्त्री-शक्ति" जो पाई है।
स्वर्ग ने लाल फूल बरसाए हैं,
वर ने तेरी माँग में सजाए हैं।
आज लाल तेरा जोड़ा है,
लाल ही रंग तेरी मेहंदी ने छोड़ा है।
"दुल्हन" सी सज के वो आई है,
आज हमारी "देवी" की विदाई है।
पहली ही सुबह लालिमा सी छाई है,
हमारी देवी आज "नारी" रूप में आई है।
नारीत्व धर्म में वृद्धि उसने पाई है,
कोख ने उसकी एक "जननी" पाई है।
नव जीवन की प्रभुता तूने सिखाई है,
गर्भ के कष्टों की गाथा मुस्कुराते हुए गाई है।
संसार के कण-कण में ममता छाई है,
आज हमारी देवी "माँ" कहलाई है।
अपने आशियां को आँचल से ढका है,
ज़माने ने तेरे सभी गुणों को परखा है।
इस परीक्षा में अव्वल तू आई है,
सही मायने में आज तू "स्त्री" कहलाई है।
परिवार पर जो कष्टों का शस्त्र जो आया,
तूने शस्त्रधारी को ही जड़ से हिलाया।
घर-घर में उल्लास की ज्योत जगाई है,
आज तू "आदीशक्ति" कहलाई है।
तेरा एक चरित्र है,
तू हर रूप में पवित्र है।
तू जो श्वेत में भी लाल है,
हर जंग में तू मेरी ढाल है।
पापों से दिलाती है मुक्ति,
तू कहलाती है आदीशक्ति।
तू है अपार शक्ति,
तू है आदीशक्ति।