मेरी आत्मा
मेरी आत्मा
मेरी कविता, मेरी शायरी तुम हो,
मेरी कल्पना का आधार तुम हो,
मेरे हर संघर्ष की गवाह तुम हो,
मेरी जीवन सिंगिनी, मेरी "आत्मा" तुम हो|
हर राह में मेरी मार्गदर्शक तुम हो,
मेरी हमसफ़र, मेरी दोस्त तुम हो,
छोड़ कर जब चले जाते है सब दुनिया वाले,
तो उस तनहाई में मेरी साथी तुम हो|
पड़कर दुनिया के झूठे आकर्षण में,
मैंने तुमको बड़ा नज़रअंदाज किया,
छोड़कर साथ तुम्हारा मैंने,
खुद अपने से बैर मोल लिया|
जिनके पीछे भाग रहा था मन मेरा,
वो तो मेरे होने से रहे,
ये रोशन चेहरे, ये रंगीन नज़ारे
सब के सब बेगाने हुए|
नहीं चाहिए ये रंगीन नज़ारे,
ये बाहरी दुनिया के नकली लोग,
मुझे तो अब साथ केवल तुम्हारा चाहिए,
जो भर दे मेरे दिल में चैन और सुकून हर रोज़|
