STORYMIRROR

Ritika Soni

Abstract

2  

Ritika Soni

Abstract

मेरी आत्मा

मेरी आत्मा

1 min
953


मेरी कविता, मेरी शायरी तुम हो,

मेरी कल्पना का आधार तुम हो,

मेरे हर संघर्ष की गवाह तुम हो,

मेरी जीवन सिंगिनी, मेरी "आत्मा" तुम हो|


हर राह में मेरी मार्गदर्शक तुम हो,

मेरी हमसफ़र, मेरी दोस्त तुम हो,

छोड़ कर जब चले जाते है सब दुनिया वाले,

तो उस तनहाई में मेरी साथी तुम हो|


पड़कर दुनिया के झूठे आकर्षण में,

मैंने तुमको बड़ा नज़रअंदाज किया,

छोड़कर साथ तुम्हारा मैंने,

खुद अपने से बैर मोल लिया|


जिनके पीछे भाग रहा था मन मेरा,

वो तो मेरे होने से रहे,

ये रोशन चेहरे, ये रंगीन नज़ारे

सब के सब बेगाने हुए|


नहीं चाहिए ये रंगीन नज़ारे,

ये बाहरी दुनिया के नकली लोग,

मुझे तो अब साथ केवल तुम्हारा चाहिए,

जो भर दे मेरे दिल में चैन और सुकून हर रोज़|


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract