मेरी आकांक्षा
मेरी आकांक्षा


काश मैं पंछी बन उड़ जाऊं ,
खुले आसमान का लुत्फ़ उठाऊं ।
क्यों लगाती खुद पर बंदिश,
बुझाती रहती मन की आतिश ।
काश मैं बचपन में फिर जाऊं,
मन का सारा मैल धो पाऊँ
लोभ, द्वेष मन को करता आकर्षित,
मैं खुद को अपने से अलग क्यों सोचती?
क्या है मेरा अस्तित्व, जीने का क्या है महत्व?
कैसी है यह जीवन की दुविधा,
जो मैं पहचान न पायी मेरी आकांक्षा !