मेरे पापा
मेरे पापा
मैं कहती आई बचपन से हर छोटी चीज़ दिला दो,
नहीं खाऊँगी खाना मुझे बस आखरी बार दिला दो।
मुझे रोते देख पापा भी पिघल जाते थे,
अगले दिन का वादा करके अगले दिन ज़रूर लाते थे।
याद आती है बचपन की वो यादे,
जब आप जाते थे बाहर और हम आपको याद किया करते थे।
मम्मी से हर थोड़ी देर मे,
कब आएंगे मेरे पापा पूछा करते थे।
आज भी याद आते है बचपन के वो दिन,
जब ऊँगली पकड़ कर अपने चलना सिखया।
और इस तरह ज़िन्दगी मे चलना सिखया,
की ज़िंदगी की हर कसौटी पर आपको अपने करीब पाया।
अपने ही तोह इन सांसो को ज़िन्दगी दि हैं,
और आपके होने से ही अदिति की पहचान बनी है।
क्या कहूँ मेरे लिए आप क्या हो...
रहने को पैरो के निचे ये ज़मीन है,
पर मेरे लिए तोह मेरा आसमान आप हो।