मेरे गुरुदेव
मेरे गुरुदेव
गुरु की उर्जा सूर्य जैसा, अम्बर-सा विस्तार।
गुरु की गरिमा से बड़ा, नहीं है कोई आकार।।
गुरु का सद्सान्निध्या ही, जग में हैं उपहार।
पत्थर को क्षण-क्षण गढ़े, मूरत हो तैयार।।
गुरु वशिष्ठ होते नहीं, और न कोई विश्वामित्र।
तुम्हीं बताओ राम का, होता का प्रखर चरित्र।।
गुरुवर पर जो श्रद्धा रखें, हृदय पर रखें विश्वास।
निर्मल होगा बुद्धि तेरा, हुआ जैसे रुई- कपास।।
गुरु की वंदना करके, बदल लो भाग्य के लेख।
बिना आँख के सूर ने, कृष्ण को लिए देख।।
गुरु से गुरुता ग्रहणकर, लघुता ही रख भरपूर।
लघुता से ही प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर।।
गुरु की कर आराधना, अहंकार को दो त्याग।
गुरु के बिन जो साधना, न बना पाया चिराग।।
