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Soubhagya Pattanaik

Abstract Tragedy

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Soubhagya Pattanaik

Abstract Tragedy

मेरे दोस्त का वक्त

मेरे दोस्त का वक्त

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एक वक्त था तेरी शिकायत तुझिसे ही करता रहगया,

फिर ऐसा क्यों हुआ कि अब तेरे पे हक ही खत्म होगया।


अभिभी तू है पास मेरे लेकिन फिरभी दूर होगए,

पहले सब पता रहता था; अब तो भाई तू एक पहेली बन के रह गए।


अरे दोस्त किसी दिन चला जाऊंगा,

इतना दूर की ढूंढने पर न मिलूंगा।


तब याद करोगे कोई एक परेशान करता था,

कुछ वक्त केलिए रोज रोता था।


चिंता न करो और कॉल या मैसेज न करूंगा,

बस तेरे यादों को लेके चला जाऊंगा। 


कभी रूठना कभी हंसना रहता था,

हर रोज तेरे से बात करता था।


पर धीरे धीरे तू व्यस्त होगया,

लेकिन मैं जहां था वहीं रहगया। 


अकेले दिन बिताने लगा,

अकेले हंसना अकेले रोने लगा।


कुछ गलत किया हो तो सजा देदो,

लेकिन मेरे भाई को जैसा था वैसे लौटादो।


तेरे बिना हर वक्त हर काम मुश्किल है, 

दुनिया मैं बस तू ही है जो मेरा भाई है।


हो सके तो मेरी गलतियों को माफ करदेना,

और मुझे वापस बुला देना।


पहले जैसा परेशान भी न अब करूंगा,

बस लौट आओ एक बार गले से लगा दूंगा।


तुम बस पहले जैसा खुश-मिसाल बन जाना 

भले ही उसके बाद मुझे हमेशा केलिए भूल जाना। 


आज पढ़लो ये खत मेरा शायद थोड़ी देर होजाए,

और तू वापस जब लौटे शायद तब तक मेरी सांसे रुक जाए।


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