मेरे भारत
मेरे भारत
नभ तक, जल तक, धरा तक
इस फैली असीम वसुंधरा तक
अनन्त विशाल फैले क्षितिज तक
सोच से गहरे जल तक
आज तक और कल तक
मेरी बीते हर लम्हे, हर पल तक
जहाँ विज्ञान का जन्म हुआ
गणित जिसने विश्व को दिया
पुराण जहां के ज्ञान का भंडार हैं
वेद, पुराण, उपनिषद
जिनमें पूरी दुनिया का सार है
जहाँ राम ने मर्यादा दी
कृष्न ने दी चतुराई
नानक ने एकता दी
गुरु गोविन्द जी ने
जहाँ कायरता भगायी
जहाँ हर एक को अपना माना जाता है
खुद को चाहे नीचे सुला दे
मेहमान को देवता बनाया जाता है
जिसका पहरेदार हिमालय है
पांव पखारता सागर का जल हो
जहाँ हीरे दबे हो माटी में
जहाँ बच्चे घूमते हो हाथी पे
जहाँ माटी सोना देती हो
जहाँ नदी दूध की बहती हो
हर रोज सूर्य डूबेगा तो कहेगा
तू था तू है तू रहेगा
जहाँ रोज सूर्य खिलाए
एक नया चमन
जहाँ पशुओं को भी पूजा जाता है
जहाँ पेड़ों को भी अपना माना जाता है
जहाँ नहीं विचलित होता
मुसीबत आने पर कभी मन
वो तू था तु है तू रहेगा
मेरे देश मेरे भारत मेरे वतन
तुझे साहिब का कोटि कोटि नमन
तुझे साहिब का कोटि कोटि नमन।