मेहरा के ख्याली कश
मेहरा के ख्याली कश
जिन्दगीं धुआँ होती रही और
वह ख्यालों के कश लेता रहा
बर्बादी का आलम ऐसा था कि
वह दर्द का भी मज़ा लेता रहा
ख़ुशियों की न परवाह थी उसको
वह तो सिर्फ दुख सहता रहा
जिन्दगीं धुआँ होती रही और
वह ख्यालों के कश लेता रहा
परिस्थितियां थी विपरीत लेकिन
धारा के साथ वह बहता रहा
बेखबर दुनिया थी उसके
अल्फाज़ों से फिर भी
कहानियां वह कहता रहा
