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Krupa Shah

Abstract

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Krupa Shah

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मैं

मैं

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आज फिर से खिल उठी हूँ मैं 

कई अर्से बाद जैसे उठ गयी हूँ मैं। 

वह पंछियों का चहकना 

वह फूलों का महकना 

वह मिटटी की सौंधी खुशबू 

सब बारीकी से  

महसूस कर रही हूँ मैं, 

आज आईने मैं  

खुद को देख रही हूँ मैं,

आज फिर से महक उठी हूँ मैं 

आज हँस पड़ी हूँ मैं,

आज थिरक रही हूँ मैं 

आज जैसे खुदा ने एक बार फिर से 

मुझको मुझसे ही मिला दिया 

आज जैसे जिंदगी को फिर से जीने लगी हूँ मैं।


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