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विशाखा शर्मा 'ख़ाक'

Romance

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विशाखा शर्मा 'ख़ाक'

Romance

मैं रोटी हूँ

मैं रोटी हूँ

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किसी ने मुझमें 

पूर्णिमा का चाँद देखा

तो किसी को चाँद में नजर आई मैं 

किसी के लिए 


सुलभ थी तो दुर्लभ किसी के लिए

अंगारों पर अपना शैशव तप्त कर प्राप्त 

मेरा चिकना यौवन दे कर भी 

मैं धनश्रेष्ठियों को न रिझा सकी 


जबकि

वंचित जन ने मेरी रूखी ,मुरझाई ,

पुरानी पड़ी देह से खुद को तृप्त माना

मैं लालसा हूँ सबकी

 कोई उकता जाता है


 मेरे आधिक्य से तो

कोई सारी रात

बदलता है करवटें मुझे सोचकर

कुछ इश्क़ में मुझे उपेक्षित करते हैं

और कुछ 


मुझसे करते हैं इश्क बेइंतहा 

वे मुझे पाने के लिए

अपना लहू ,अपने दिन अपनी रातें 

मेरे नाम करते हैं

तब कहीं 


मुझे देखते हैं अपने घर में

खुशी से फूली हुई

हाँ मैं 'रोटी' हूँ।


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