काव्य लेखन में मेरा शैशव ही चल रहा है बस तुतला लेती हूँ, मन के उद्गार लेखनी की जुबान से कहती हूँ
सर्वसुख आंवले लेकर भैंस लेने चल दिया सर्वसुख आंवले लेकर भैंस लेने चल दिया
मैं चने के झाड़ को ही चबाने लगी उसमें उनका नमक जो था!" मैं चने के झाड़ को ही चबाने लगी उसमें उनका नमक जो था!"
राख इधर उधर की तो एक सख्त से कागज पर "प्रेम-अप्रेम"शब्द 'जल' गए थे। राख इधर उधर की तो एक सख्त से कागज पर "प्रेम-अप्रेम"शब्द 'जल' गए थे।