काव्य लेखन में मेरा शैशव ही चल रहा है बस तुतला लेती हूँ, मन के उद्गार लेखनी की जुबान से कहती हूँ
साँचे में कब तक ढलेगा रे जीवन कितना और छलेगा। साँचे में कब तक ढलेगा रे जीवन कितना और छलेगा।
मुझे देखते हैं अपने घर में खुशी से फूली हुई हाँ मैं 'रोटी' हूँ। मुझे देखते हैं अपने घर में खुशी से फूली हुई हाँ मैं 'रोटी' हूँ।
माना किरकिराहट भी है मेरे 'प्रेम ' में लेकिन बिल्कुल 'वंशलोचन' जैसी ! माना किरकिराहट भी है मेरे 'प्रेम ' में लेकिन बिल्कुल 'वंशलोचन' जैस...