मैं हूं वह भारत
मैं हूं वह भारत
अंकुरित हुई जहां से सभ्यता
प्रकाशित हुई जहां से मानवता
अलंकृत करती जन जन की शालीनता
मैं हूं वह भारत, मैं हूं वह भारत
मुरली मनोहर की मधुर ध्वनि हूं
तो पाञ्चजन्य का भीषण हुंकार हूं
पार्थ का नम्र व्यवहार हूं
तो गांडीव का प्रलयंकारी टंकार हूं
मैं हूं वह भारत, मैं हूं वह भारत
देवी सीता की निष्ठा हूं
राधा के प्रेम की पराकाष्ठा हूं
मानवीय संबंधों तथा
मानवीय मूल्यों का सृष्टा हूं
मैं हूं वह भारत, मैं हूं वह भारत
आरुणि की गुरुभक्ति,
श्रवण का मातृ पितृ के प्रति समर्पण हूं
भरत के भ्रात भक्ति का
उत्कृष्ट उदाहरण हूं
सावित्री के सतित्व से
यमराज के पराजय का भी कारण हूं
मैं हूं वह भारत, मैं हूं वह भारत
स्त्रित्व ऐसा कि शिशु बन
गोद में खेले त्रिदेव महान
दिव्यता ऐसी कि स्पर्श पाते ही
नारी में परिवर्तित हुआ पाषाण
भक्ति ऐसी की ईश्वर को भी होता अभिमान
मैं हूं वह भारत, में हूं वह भारत
प्रकृति, पृथ्वी, पशु, सरिता को
भी कहते जहां माता
माता, पिता, भ्राता, गुरु को भी
कहते जहां देवता
मातृ प्रेम को भी लालायित
रहते जहां स्वयं विधाता
मैं हूं वह भारत, में हूं वह भारत
फलीभूत हुए जहां
अनेकानेक पंथ, विविध संस्कृति
परस्पर विद्यमान होते जहां
विभिन्न उपासना पद्धति
कालांतर में होता रहा रीत,
प्रथा, परंपरा की उन्नति
मैं हूं वह भारत, मैं हूं वह भारत
संसार को दिया शाश्वत गीता ज्ञान
योग, उपनिषद, ग्रंथ तथा पुराण
अध्यात्म, धर्म, भक्ति,
दर्शन में सदा किया संधान
मैं हूं वह भारत, मैं हूं वह भारत।