मैं और वो
मैं और वो


मेरे सपनों में आते हो
मुझ पर प्रेम बरसाते हो
फिर सपनों से बाहर आकर
क्यों अनजाने बन जाते हो।
मेरे अश्कों से तुम को क्या
राज मिलेगा धरती का
फिर इतना क्यों तड़पाते हो,
फिर सपनों से बाहर आकर
क्यों अनजाने बन जाते हो।
सब आते हैं कुछ कहते हैं
कुछ हँसते है, कुछ समझाते हैं
सबको सुनते रहते हो
बस हमको न सुन पाते हो,
फिर सपनों से बाहर आकर
क्यों अनजाने बन जाते हो।
दिन भर चलते रहते हो
और छांव कहीं न पाते हो,
आशाओं के भार तले
खुद को दबाये जाते हो,
न खुद कहते हो कुछ भी
न मुझ को कहने देते हो ,
और दूर खड़े मुसकाते हो।
फिर सपनों से बाहर आकर
क्यों अनजाने बन जाते हो।।