मैं आजाद परिंदा
मैं आजाद परिंदा
मैं आजाद परिंदा मुझको आसमान तक जाना है,
विपरीत हवा के उड़कर, सपनों के शिखर को पाना है।
माना संघर्षों की लहर बड़ी है, अगणित बाधायें जीवन में
किन्तु अभी जिंदा हैं देखो जीतने की आशाएं मन में।
असफलताओं के घिरे हैं बादल, उम्मीद का सूरज चमक रहा है,
'समय' बाण से घायल पक्षी मंद हुआ पर उड़ तो रहा है।
उड़ते-उड़ते एक दिन मुझको अपनी मंजिल को पाना है
मैं आजाद परिंदा मुझको आसमान तक जाना है।
संघर्षों के महासमर में, खड़े हुए हैं सब कुछ हारे
लिये हुए हैं फख्त उम्मीदें और शेष हैं सपने सारे।
माना हवा तीव्र है लेकिन, इतनी नहीं कि लौट आऊं मैं
समयचक्र की परिधि में उलझे सपनों को यूं छोड़ आऊं मैं।
थके हुए हैं पंख हमारे, फिर भी उड़ते जाना है
मैं आजाद परिंदा मुझको आसमान तक जाना है।
विपरीत हवा के उड़कर सपनों के शिखर को पाना है।।
