मानव
मानव
सब जीवों में मानव जीवन, श्रेष्ठ यहाँ कहलाता है।
अपने कर्मों के फल से वह, जीवन स्वयं सजाता है।
हैं चौरासी लाख योनियाँ, जीव जगत में पाता है।
कृत कर्मों के फल से अपने, योनि नवल में जाता है॥१॥
सत्कर्मों के बल पर मानव, मान जगत में पाता है।
सुखमय जीवन रचता अपना, श्रेष्ठ जीव कहलाता है॥
पारस के जैसे ही अद्भुत, मेधा मानव ने पाई।
जिसके बल पर उसने जग में, शान अनोखी जतलाई।
धर्म मार्ग पर चलकर नर ने, धवल कीर्ति है फैलाई।
ज्ञान विभा से जग में उसने, नवल नीति है सिखलाई॥२॥
सत्कर्मों के बल पर मानव, मान जगत में पाता है।
सुखमय जीवन करता अपना श्रेष्ठ जीव कहलाता है॥