माँ
माँ
माँ ने जीवन में सदा ही समर्पण किया।
अपने लिए कुछ न मांगा सब है अर्पण किया।।
संतान की जिद्द को वो इस कदर मानती।
जैसे कोई जवाहरात हो उसके लिए कीमती।।
उसने प्रारंभ से अब तक न कोई इच्छा रखी।
तब भी उसकी संतानों ने न उसकी दी हुई शिक्षा रखी।।
जो माँ संतान को दूसरों के प्रति विनम्रता का ज्ञान देती रही।
आज संतानो के लिए वो ना किसी काम की रही।।
आजकल आए हुए ये जवां।
कहते हैं कि माँ को रखेंगे कहाँ।।
आज की पीढ़ियों से मैं पूछता हूँ।
इन नौजवानों से प्रत्युत्तर चाहता हूँ।।
जिस माँ ने तुम्हें गर्भ में धारण किया।
इतने वर्षों तक तुम्हारा लालन पालन किया।।
जब भी तुमको कहीं ठोकर लगी।
उसने तुम्हें
पुचकारा और रोने लगी।।
आज अपनी जननी को तुम नकारते हो।
ममता की मूरत उस माँ को धिक्कारते हो।।
फिर भी उसने कभी न तुम्हें बद्दुआ दी।
तुम सुखी और सफल हो बस यही दुआ दी।।
यदि उसने न चाहा होता तुम न आते।
कराया न होता मधुपर्क का पान तो न खिलखिलाते।।
ये तो माँ की ममता है जो है उसे रोक देती।
नहीं तो इतना कष्ट देने पर वो जरूर श्राप देती।।
आग्रह है हे नौजवानों प्रांजल व्यक्ति बन जाओ।
जिसने तुम्हें सुख दिया उसे स्वर्ग का अनुभव कराओ।।
माँ को साथ रखो उनका आशीर्वाद पाओ।
जिसके बल से दुनिया में अपना परचम लहराओ।।
ऐसा वातावरण निर्मित करो सभी जगह पर।
जिससे रामराज्य की स्थापना हो यहीं पर।।