माँ !
माँ !
रोज सुबह आनेवाली पहिली सूनहरी किरण तुम हो माँ
कडी धूप में ममता की छाव लानेवाली तुम हो माँ
मेरे लिए खुशीयोंका थैला भर लाने वली तुम हो माँ
मेरे हर सुख दुःख में मेरे साथ रहने वाली तुम ही हो माँ
इस धरती पर मुझे मेरा अस्तित्व देने वाली तुम हो माँ
रेंगते रेंगते अपने पैंरो पर मुझे खडा करने वाली तुम हो माँ
जिंदगी की कडवाहट में प्यार का अमृत भर देने वाली तुम हो माँ
मेरे सपनों को सहलाकर मुझे आत्मविश्वास देने वाली तुम ही हो माँ
कभी घुस्से में आकर जोर सें डाट लगाने वाली तुम हो माँ
मुझे चोट लगने पर दौडकर मरहम लगाने वाली तुम हो माँ
मेरी हर ख्वाईश को पुरा करने वाली तुम हो माँ
मैं रुठ जाऊ कभी तो, मुझे मनाने वाली तुम ही हो माँ!
सबके चेहरेपर मुसकुराने की वजह तुम हो माँ
खुद से ज्यादा अपने बच्चो का खयाल रखने वाली तुम हो माँ
जिंदगी के हजार दुखडे खुद सहकर,अपनो को खुश करने वाली तुम हो माँ
मन में तुम्हारे कुछ हो कर भी, कुछ ना कह पानी वाली तुम ही हो माँ
घर में सबसे पहले उठकर सबका मनपसंद खाना बनाने वाली
तुम हो माँ
खुद की पसंद को पिछे छोड दुसरो के पसंद को पुरा करने वाली तुम हो माँ
मेरी मुसिबत कुछ ना कहकर भी जानने वाली तुम हो माँ
हर रिश्ते को अपना बनाकर बडले में कुछ ना माँग ने वाली
तुम ही हो माँ
ईश्वर का वरदान, जन्नत का खूबसुरत रूप तुम हो माँ
हर दम सबको प्यार बाटने वाली तुम हो माँ
बच्चो से कभी भी नाराज न होने वाली तुम हो माँ
अपनी हर दुआओं में अपने बच्चो की सलामती माँगने वाली
तुम ही हो माँ
