माँ
माँ
कुछ रस्मे हैं जमाने की जो बदनाम करती है
नहीं तो वो मेरे लिए दवा का काम करती है।
सुबह से रात तक अविरल व्यस्त रहती है
किसी ने देखा है, कभी माँ भी आराम करती है।
खुद की छोड़ और सबकी फिक्र रखती है
हर बातों में पति, परिवार का जिक्र रखती है।
बच्चों से ले कर बूढ़े तक का सेवा तमाम करती है
किसी ने देखा है, कभी माँ भी आराम करती है।
अपने जज्बातों को वो छुपाती रहती है
दुःख में भी वो मुस्कराती रहती है।
घर के राजों को, क्या कभी सरेआम करती है
किसी ने देखा है, कभी माँ भी आराम करती है।
सबको खुश रखने में भले दुःख सह लेती है
कभी आधा तो कभी भरपेट खा कर सोती है।
परिवारों को जोड़ने में धागे का काम करती है
किसी ने देखा है, कभी माँ भी आराम करती है।
अपनो के कारण श्रृंगार तक को छोड़ देती है
बच्चों के कारण सौंदर्य से मुँह मोड़ लेती है।
उसके चेहरे की झुर्रियाँ, किस्सा बयाँ करती है
किसी ने देखा है, कभी माँ भी आराम करती है।।
