STORYMIRROR

Anees Shaikh

Abstract

4  

Anees Shaikh

Abstract

माँ

माँ

2 mins
417

उसे लफ़्ज़ों में क्या समेटू जिसमें सारी दुनियां ही सिमटी हो 

बेचैन दिल को सुकून जिसके आँचल तले ही मिलती हो

जब माथे पे फ़िक्र की लकीरों को अपने आँचल से छुपाती थी 

इक नूर सा बरसता था जब मुझे देख के मुस्कुराती थी 

ऐसा लगता था मानो मुझमे ही उसकी सारी दुनियाँ थी 

मुझे ख़ुश रखने की चाहत में अपना सारा दर्द भूल जाती थी 

आज वो लफ़्ज़ तरसते हैं जो मुझे उससे कहना था 

माँ कभी तू भी मुस्कुरा लिया कर 

कभी ख़ुद के लिए भी ख़ुशियाँ ढूँढ लिया कर 

ये फ़िक्र ये परेशानी तो आते जाते रहेंगे 

कभी तू भी तो ख़ुद के लिए जी लिया कर 

माना ख़्याल है तुझे सबका 

पर माँ तू भी तो कभी अपना ख़्याल रख लिया कर

कभी कहा नहीं पर मुझे भी तेरी परवाह थी

तू नहीं है आस पास ऐसे ख्वाब से भी डर जाती थी 

उन अल्फाजों की ख्वाहिशें अधूरे हैं आज भी 

मुकम्मल ना हुए इस दर्द में तड़पते हैं आज भी

जिस दुनियाँ में रहने का तू सलीका सिखाती रही 

आज तेरे ना होने से ये दुनियाँ बहुत सताती है 

साथ तेरा था तो हर ख़ुशी मुकम्मल थी

अब तो मुसल्लत है

बस रंजिशें आसेब की तरह

मुझमें ज़िन्दा है कहीं ये महसूस होता है 

जब कोई मुझे तुझसा कहता है

मुमकिन नहीं चंद अल्फाजों में तुझे समेट पाना 

और हजारों लफ़्ज़ में भी तेरे वुजूद को पूरा कर पाना 

माँ ख़ुदा की ख़ूबसूरत नेअमत है तू 

इक लफ़्ज़ में समेटूं तो मेरा सारा जहां है तू


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract