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bhandari lokesh

Inspirational

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bhandari lokesh

Inspirational

माँ

माँ

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जो आँखों में आंसू लेकर

होठों से मुस्काती है

ये जीवन महिमा है जिसकी

वो शख्स माँ कहलाती है

जो नव माह की गर्भावस्था में

अपना खून पिलाती है

और पैरों के प्रहारों को

प्यार से सहती जाती है

रूप सलोने की कुर्बानी

देकर ना घबराती है

बस बेटा चितचोर कुंवर

और बेटी मृगनयनी के

गीतों को हर पल गाती है

ये जीवन महिमा है जिसकी

वो शख्स माँ कहलाती है

वो खुद गीले बिस्तर सो कर

बेटे की जगह सुखाती है

और गले लगाकर लल्ला को

वो लोरी गाकर सुलाती है

फिर मन मोहन के रूप नयन से

चाँद को मुरझाती है

बदन छुपाकर चादर से

खुद चुपके से सो जाती है

ये जीवन महिमा है जिसकी

वो शख्स माँ कहलाती है

बड़ा हुआ तो बेटे की

थाली भी बड़ी सजाती है

खुद भूखी रह जाती पर

बेटे को नहीं बताती है

वो उसकी राहों के कांटे चुनकर

खुद ग़ुलाब बन जाती है

ये जीवन महिमा है जिसकी

वो शख्स माँ कहलाती है!


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