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Monika Garg

Abstract

5.0  

Monika Garg

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मां, तुम हो मेरा जहां

मां, तुम हो मेरा जहां

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मां तुम हो मेरा जहां,

तुमसा और कौन कहां।


तुमसे मैंने जिंदगी पाई,

मां मैं हूं तेरी परछाई।

मैं हँसती हूं तो तू हँसती है,

तेरी खुशी मेरे भीतर बसती है।

मुझसे ही तो है जुड़ी मां

तेरे होठों की मुस्कान।


मां तुम हो मेरा जहां,

तुमसा और कौन कहां।


कभी ना गिरने तू मां देती

जब भी गिरती तू थाम लेती।

मां मेरे अंदर की शक्ति हो तुम

हर वक्त दिल में बस्ती हो तुम

तुमसे ही तो मैं हूं ना,

तुझे छोड़ में जाऊं कहां।


मां तुम हो मे

रा जहां,

तुमसा और कौन कहां।


आंचल में मां तू ने छुपाया

अच्छे बुरे का भेद बताया

जब जब पड़ी धूप राहों में,

की तुमने की ममता की छाया।

तू नहीं तो कुछ भी नहीं,

तुझसे ही मेरी पहचान।


मां तुम हो मेरा जहां,

तुमसा और कौन कहां।


तुमने जब बोलना सिखाया,

जुबान पे पहला शब्द मां आया।

जब जब कदम डगमगाए राहों में,

हाथ पकड़ कर चलना सिखाया।

मुझे मिला जो सबसे पहले

वह अनमोल तोह्फा तू मां।


मां तुम हो मेरा जहां,

तुमसा और कौन कहां।


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