माँ का आँचल
माँ का आँचल
माँ के आँचल की याद सदा,
आती है, मन रे! धीर धरो;
इस जग की आपाधापी में,
मत तुम कोई फरियाद करो।
जो कुछ पाया है, सब ले लो,
मेरा जो भी, सब तेरा है;
रीते हाथों ही जाना है,
माया का घना अँधेरा है।
इस तम की जकड़न से मुझको,
आओ, अब तो आज़ाद करो।
माँ के आँचल की……………….।
जब आया था इस दुनिया में,
इक माँ थी औ’ इक मैं ही था;
कुछ तेरा था ना मेरा था,
ममता का अद्भुत घेरा था।
उस स्नेहविन्दु की रिमझिम में,
धुल जाने दो, एहसान करो।
माँ के आँचल की………………..।
मैं रोया तो वह रोयी थी,
मोती आँसू के बह निकले;
खुद दुख सहकर सुख देती थी,
वर्षों जीवन के चल निकले।
हर वक्त उसी की आँखों का-
तारा बन मुझको रहने दो।
माँ के आँचल की………………।
अद्भुत आँगन घर का अपना,
अब लगता है सूना-सूना;
यादों का आना-जाना है,
खामोशी में है अफसाना।
बेचैन निगाहों की तड़पन,
धड़कन मेरी रुक जाने दो।
माँ के आँचल की…………….।
जब रब धरती पर आ न सका,
माँ ने जग का शृंगार किया;
निज तन-मन, जीवन अर्पण कर,
इक नाम, मुझे उपहार दिया।
तनहा मन वृद्धाश्रम-पथ में,
मेरी साँसें थम जाने दो।
माँ के आँचल की………………।
घर में टूटे सपनों का घर,
ऐ युग की अंधी दौड़! ठहर;
निज जननी से यदि नेह नहीं,
कह, जीवन का क्या अर्थ सही?
इक ब्रह्म सत्य है, नश्वर तन;
यह गीत अमर अब गाने दो।
माँ के आँचल की………………।
है धन्य-धन्य यह पुण्यभूमि,
माँ के चरणों में स्वर्ग यहाँ,
मैं जनम-जनम कुर्बान करूँ,
इस हिन्द-देश-सा देश कहाँ?
अनमोल रतन भारत-मिट्टी में,
मिट-मिटकर मिल जाने दो।
माँ के आँचल की……………….।
