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Smita Saksena

Inspirational Tragedy

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Smita Saksena

Inspirational Tragedy

मान हूँ... अभिमान हूँ....

मान हूँ... अभिमान हूँ....

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मान हूँ अभिमान हूँ,

अपने इस घर की मैं शान हूँ।

इस मान को, मेरे इस अभिमान को,

देना ना कभी चुनौती तुम।


बेटी बनकर हूँ जन्मी यहाँ,

समझ न लेना बोझ तुम मुझको।

मान हूँ अभिमान हूँ,

अपने घर की मैं शान हूँ।


बोझ मैंने ही उठाया है हमेशा,

कभी अपना तो कभी तुम्हारा,

कमजोर भी मानना मुझे ,

भूल ही रही है तुम्हारी हमेशा।


मान हूँ अभिमान हूँ,

अपने घर की मैं शान हूँ।

संबल विश्वास तो मुझसे ही पाया तुमने,

बेटी हूँ और हर वो फर्ज निभाउँगी,


जिसकी आकाँक्षा बेटे से की है तुमने,

बस जन्म लेने दो मुझे।

मान हूँ अभिमान हूँ,

अपने घर की मैं शान हूँ।


देना न दर्ज़ा तुम देवी का मुझे,

गर न मान सको इंसान भी मुझे,

सच में ,सबल बेटी को तुम जरूर बनाओ,

बेटा भी नहीं उसे बेटी की तरह सिर्फ बनाओ।


मान हूँ अभिमान हूँ,

अपने घर की मैं शान हूँ।

जीने दो इज्ज़त से मुझे अब,

नोचने वाले गिद्ध नहीं होंगे जब,


शिकार मुझमें नहीं वो ढ़ूढ़ेंगे जब

हर बेटी कह सकेगी निडरता से तब

"अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो।"


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