मां भी
मां भी
मां, क्या आप कभी डेट पर गए हो ?”,मगन का प्रश्न सुन रीना चौंक गई!
"डेट ?” उसके जमाने में ये सब बातें कहाँ होती थीं! छोटा सा कस्बा …! कोई बात किसी से छुपती नहीं थी। फिर बाबूजी का कठोर अनुशासन… कभी हिम्मत ही नहीं हुई कि इस विषय पर कुछ सोचे भी , लड़कों से बात करना,दोस्ती करना व डेट पर जाना तो दूर की बात थी!
शादी से पहले यह सब डेट- वेट ,,ना बाबा ,,, कहां यह तो नामुमकिन था। वो भी संयुक्त परिवार!!
रिश्ते के बाद उसे एक क़िस्सा अभी भी याद है। तेरे पापा को मुझ से मिलना था,, उस समय लैंडलाइन फोन थे,,,फोन की घंटी बजती सब अलर्ट,,,, वहां भी पापा सब से बचते-बचाते मुझ से मिलने की बात कह रहे थे,,मैं भी सकुचाती,और घरवालों के डर से मना कर दिया ।शायद पापा उस दिन मुझे डेट पर ले जाना चाहते होंगे... लेकिन अभी तक तुम्हारे पापा से इस बात पर कोई जिक्र ही नहीं हो पाया।
"खैर...छोड़,बेटा तू भी न जाने कैसी बात कर रहा है।" शादी के बाद ना पापा के पास समय ना मुझे फुर्सत..... परिवार की जिम्मेदारी ।रीना यह सब मुस्कराते हुए बोली
चल जा,अब मुझे अब काम करना है।रीना सोफे पर से उठते हुए बोली
"कोई बात नहीं माँ, सोचे नहीं, आज आप को काम करने की भी ज़रूरत नहीं है। आप तैयार हो जाइए हम डेट पर चल रहे हैं!”
" पागल है क्या, कोई माँ के साथ भी डेट पर जाता है भला ?”
"क्यों ? क्या गर्ल फ़्रेंड के साथ ही जाते हैं ?” हँसते हुए मगन बोला "मैं तो आपके साथ ही जाऊँगा। सुंदर-सी साड़ी पहन के तैयार हो जाइए, आख़िर ये आपका पहला डेट है!”
बेटे के ज़िद के आगे उसने हथियार डाल दिए।तैयार होकर निकली तो उछल पड़ा, "वाउ माँ, आज तो सबकी नज़रें आप पर ही होगीं!”
"चल हट, पिटना है क्या ?” उसने हँसते हुए कमर पर हाथ फेरा
मानो बेटे ने उसे ज़िंदगी की सबसे हसीन शाम तोहफ़े में दे दी हो! सबसे पहले उसे कपड़ों की दुकान पर ले गया।
"शॉर्टलिस्ट करते है माँ। आप पहले पाँच आउट्फ़िट्स छाँट लो फिर फ़ाइनल करेंगे।”
पर उसे अंतिम पाँच में से एक पसंद नहीं करने दिया मगन ने… पाँचो ले लिए! पहली बार जीवन में उसके लिए इतने कपड़े ख़रीदे गए थे!
फिर वे एक मूवी देखने गए , उसके फ़ेवरेट हिरोइन की! वहाँ से निकले तो एक महँगे रेस्टोरेंट में डिनर करने चले गए।
"बताओ माँ क्या खाना है ?”
"तेरा जो जी चाहे ऑर्डर कर दे, मुझे तो सब पसंद है!”
"अच्छा! तभी उस दिन फ़ोन पर मौसी से कह रही थी कि बरसों से पनीर टिक्का नहीं खाया क्योंकि मगन के पापा को पनीर से ऐलर्जी है ?”
"हाँ तो है ना। उनका पेट….”
"आपको तो नहीं है न ? मगर आप कभी भी अपनी पसंद ज़ाहिर नहीं करती। आज ऑर्डर आप ही करेंगी। सब कुछ अपनी पसंद का।”
"बचपन से देखा है माँ, मेरी पसंद, पापा की, दादी की पसंद को ही आपने अपनी पसंद बना ली है। कपड़े भी पापा के पसंद के ही लेती हो। घर की साज-सज्जा दादी के इच्छा अनुसार ही होता है। आपकी पसंद की अहमियत क्यों नहीं माँ ?
शाम हो गई आज।
अपने बेटे की ख्वाहिश पूरी की या बेटे ने मुझे अपने आप से रूबरू कराया। यह सोच रही रीना ने देखा सामने चेयर पर नगेंद्र गुलदस्ता लिए मुस्कराते बैठे दिखाई दिए।
पीछे दादा-दादी जी और छुटकी ने आकर रीना को बोला।
सबके साथ मिलकर रीना ने छुटरपुटर खाना खाया।
रीना समझ पाई डेट का आनंद। आजकल की जेनेरेशन को भी समझ पाई। ग़लत जब तक ग़लत कभी नहीं होता जब तक कुछ भी ग़लत ना हो।
