लकीर का फ़कीर।
लकीर का फ़कीर।
कब तक हम यूं लकीर के फकीर रहेंगे,
कब तक लकीरें पिटते हुएं सभी जिएंगे।
लहू-पसीना एक करना हमें भी होगा ना,
कब तक ऐसे ही लंबी-चौड़ी हांकते रहेंगे।
लहू का घूंट पीकर रह जाओगे एक दिन,
कब तक तुम लल्लो-चप्पो ही करते रहोगे।
किसी दिन सबको लेने के देने पड़ जाएंगे,
तब अपने या लंगोटिया यार काम आएंगे।
तब प्रिय मित्र की मित्रता का लोहा मानोगे,
जब तुम्हारे दुश्मनों को लोहे के चने चबवा देंगे।
