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लिहाज़

लिहाज़

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अपने बन्दों का इतना तो कर लिहाज़ मौला,
कि किसी का मर्ज़ ना बने लाइलाज मौला।

तेरे बनाए शीशे अब पल में ही टूटने लगे,
क्यूं तू बन गया ऐसा आईना-साज़[1] मौला।

ना खोए कोई अपना, दौलत की कमी से,
मसीहा बनके गरीबों का कर इलाज मौला।

अस्पतालों में आहें ही आहें गूंजती रहतीं,
कैसे हो गया तू हमसे इतना नाराज़ मौला।

अगर बनना ही है तो सिर्फ तेरा ही बने,
जिस्म मशीनों का ना बने मोहताज़ मौला।

तकलीफ़ में कैसे तारीफ़ करे तेरी अशीश,
इन फ़ैंसलों पर क्यूं ना करे एतराज़ मौला।

 

 [1] भगवान


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