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Amit Kumar

Abstract

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Amit Kumar

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लड़के हैं इसीलिए किसी से कहते नहीं..

लड़के हैं इसीलिए किसी से कहते नहीं..

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ऐसा नहीं की वे सहते नहीं

.... लड़के हैं, इसीलिए किसी से कहते नहीं ।


 बेटे के जन्म पर जश्न मनाया जाता है

कुल का दीपक है हर ओर जताया जाता है

दीपक सी रोशनी देते हैं, तो जलन क्या वे सहते नहीं ?

बस... वे लड़के हैं, इसीलिए किसी से कहते नहीं ।


अपनो के खातिर सपनों को चूर कर जाते है

खुद को मार कर, परिवार के लिए जी जाते हैं

गुटखा, सिगरेट, तंबाखू या शराब

जानते है वो भी की नशा है जानलेवा

न हो जाएं पागल कहीं, शायद इसीलिए

खुद का दर्द खुद पीकर, ज़िंदगी दांव पर लगाते है।

रहते हैं शान्त समुद्र से, नदियां बन बहते नहीं

 लड़के हैं, इसीलिए किसी से कहते नहीं ।..


बचपन से सिखाया जाता है

तुम लड़के हो... हर फर्ज़ तुम्हारे हिस्से आता है

देख हालात जला लेते हैं, बचपन अपना

पड़े ज़रूरत तो..बाल मजदूरी करने में भी पीछे ये रहते नहीं

 लड़के हैं न इसीलिए किसी से कहते नहीं ं।


कुछ दिन रहें जो चैन से तो अपने ही घर में निकम्मे, नाकारा कहे जाते हैं

घर हो कर भी घर की खातिर बेघर भटकते जाते हैं

मां के सपने, पत्नी की इच्छा, बच्चों की ख्वाहिशें

सभी के आशाओं की पतंग उड़ाने को

उलझे मांजे की तरह कई जगह से तोड़े जाते हैं

रह जेब अगर खाली तो उनके अपने ही इन्हें छोड़े जाते हैं


ऐसा नहीं की इन में आंसू नहीं...

लेकिन बचपन से बता दिया जाता है, बेटा तुम लड़के हो और लड़के कभी रोते नहीं ।

कहना चाहते है ये बहुत कुछ, कुछ मगर ये कहते नहीं

पर ऐसा नहीं की ये सहते नहीं

अरे ये लड़के हैं न इसीलिए किसी से कहते नहीं ं।



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