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Birendar Singh

Abstract

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Birendar Singh

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लाडली

लाडली

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घर एक हंसी से महक जाए, बेटी तो ऐसी है कली।

अपने मम्मी और पापा की, होती है लाडली।                

कोई नाकाम न समझना बेटियों को, बेटी तो अपना कल है।

गुनगुनाते रहेंगे होठों पे हम, बेटी तो संस्कारों की गजल है।


अगर सुरक्षित बेटियां वतन में रहेंगी, हमको ये अभिमान है।

ऊंचा नाम करेंगी वतन का, मात-पिता की पहचान है।

हवा का रुख बदल देती है बेटी, आज बेटियां हमारी पीछे नहीं।

छोड़ो ये जिद दहेज की यारो, बेटियों के बिन जीवन के बाग-बगीचे नहीं।


इन कलियों को खिलने भी दो,यूं न इनपे सितम करो।

दुष्कर्म ने बेटियों को इस क़दर दहलाया, इस दहेज को भी बंद करो।

लेकर ये दुष्कर्मी का दाग जाएंगी कहां जो त

ुमने इनको दिया है।

रेप की सताई हुई बेटियों ने, हर आंसू घूंट-घूंट पिया है।


गंदे अपने विचारों से नरक इस मुल्क को बनाते हो क्यों।

मिट पाए न जो कभी, इनके दामन पे ये कलंक लगाते हो क्यों।

क्या बीत रही है उनपे, पूछो कोई उन चेहरों से।

तड़प रही जो गमों के समुंदर में, सवाल करो कोई उन लहरों से।


चीखती चिल्लाती कहे,बेटियों की ये पुकार।

बिन मर्जी के छूना, हमें नहीं है अधिकार।

इस हरकत से वतन के तुम,बन जाओगे गद्दार।

जो करोगे तुम, किसी की बेटी का बलात्कार।


बेटियों को पल-पल रुलाता है,वो मंजर दुष्कर्मी का।

बहुत भयानक है अंत,हमारी इस करनी का।

इन फूलों के बिन घर में हमारे, खुशियों की बारिश नहीं।

इस बेशर्म हरकत की, कहीं भी कोई सिफारिश नहीं।


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