गुमनाम चीखें
गुमनाम चीखें
सुनो मेरे मम्मी और पापा गुमनाम ये चीखें,
आपने शक्ल न देखी जिस बेटी की
रूखी-सुखी में मैं भी कर लेती गुजारा,
मुझे जरूरत नहीं थी बंगला और कोठी की
है भगवान बिन सोचे बिन समझे किया कैसे ये फैसला,
क्या नहीं अक्ल थी ठिकाने मेरे मम्मी-डैडी की
छुपाकर आंचल में दूध पिलाना, मां आपको अच्छा न लगा
लोरीयां सुनाकर पालने में झूलना, मां शायद आपको सच्चा न लगा
जवानी तो जवानी छीन लिया, हमारा बचपन भी
दुनियां में आने से पहले,छीन ली हमारी तो धड़कन भी
पढ़ लिखकर मैं भी,कुछ नाम कमाती
इस भारत की बेटी, मैं भी कहलाती
कदम-कदम पर, साथ निभाती
कोई बात किसी से, कभी न छुपाती
कभी खाना बनाती कभी कपड़े धोती,और मैं जाती स्कूल में
घर के नियमों का पालन करती, कोई बात न कहती फजुल मैं
गमों के अंधेरे में ऐसे आती नजर, जैसे कोई हीरा हो धूल में
मेरी हंसी से हमेशा महकता ये घर,इतनी महक आती न फूल में
कभी हंसती कभी गाती,कभी बोलती मैं कोयल सी बोली
आपके आंगन में खेलती मैं,आंख मिचौली
सबके मन को लुभाती,सूरत ये भोली
आपके सपनों की सजाती मैं रंगोली
मैं भी देखना चाहती थी,धूप और छांव
खूबसूरत फूलों का चमन,प्यारा ये गांव
समुंदर की लहरें,दौड़ती हुई ये पानी में नांव
आपकी उंगली पकड़कर,चलती मैं पांव
जब निकली जां हमारी, मम्मी और पापा पुकारा था हमने
अपने स्वार्थ का खंजर,जिगर में उतारा था तुमने
देनी पड़ेगी दहेज इसलिए पाया ये, छुटकारा था तुमने
किया ये काम बहादुरी का नहीं, एक नन्हीं सी जान को मारा था तुमने
भ्रूण हत्या से बढ़कर,कोई पाप नहीं
इस हत्या का कोई,पश्चाताप नहीं
भूलकर भी भुला न पाओगे,बेटी के संस्कारों को
बुझ नहीं सकते जो बुझाना चाहे, पाप के अंगारों को।