क्यूंकि मैं नारी हूं
क्यूंकि मैं नारी हूं
क्यूंकि मैं नारी हूँ
इसलिए अबला हूँ, बेचारी हूँ
क्या हुआ अगर मैं थोड़ा-सा अलग हूँ
थोड़ा-सा बाहर घूम लेती हूँ
जी लेती हूँ अपने हिस्से की ज़िंदगी
खिलखिलाती हूँ अपने सपनों की दुनिया में
क्यूँ यह सब बुरा लगता है दुनिया को?
क्यूंकि मैं नारी हूँ
समाज के बनाए हुए बंधनों के घेरे में घिरकर -
"लड़की हो मत करो नादानियाँ
थोड़ा सिमटी, सहमी-सी रहो"
लोग क्या कहेंगे,
"लड़की बिगड़ गयी है,
मत करो कोशिश, लड़का बनने की"
क्यूंकि तुम नारी हो
मुझे पता है कुछ शर्तें हैं यहाँ
अपनी बेजुबान, छटपटाती ज़िंदगी जीने के लिए
बंधन को तोड़ने की कीमत चुकानी पड़ती है जीने के लिए
लेकिन क्या दुनिया को पता है
उसका दायरा कहाँ सिमटता है
पीड़ा मन की जब बढ़ती है
भीतर का दायरा घटता है
हर दायरे की सीमा भी तो नहीं होती
हर किसी के दायरे में झाँकना एक नारी को और अकेला कर देती है,
उसके जीवन का छोर छूट जाता है
कभी कोई मिल जाता है
कभी कोई और छूट जाता है
क्यूंकि वो नारी है।