Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

आकिब जावेद

Abstract

5.0  

आकिब जावेद

Abstract

कविता

कविता

1 min
340


बहुत उलझन में हूँ

रस्ते भटक रहे है अब!

कंकड़ियां सवाल कर रही मुझसे

जवाब किसी गुफ़ा में चले गए है

नदी में समुद्र कूद रहा है मौन सा

पौधे पेड़ों से करते है चतुराई

बहुत उलझन में हूँ

रस्ते भटक रहे है अब!


शोर ने ताला लगा दिया मौन पर

उलझने दिमाग से करे शिकायत

बहस ज़िन्दा निगल रही ज़िन्दगी

क्रूरता ने ख़ूबसूरती पे डाला पहरा 

बहुत उलझन में हूँ

रस्ते भटक रहे है अब!


ख़ामोशियाँ ले रही अंगड़ाई

चुप्पी गुम किसी सीवान में

लहरें उफ़ान मार रही मौज़ो पर

ज्वार कब से उठ रहा दिल में

बहुत उलझन में हूँ

रस्ते भटक रहे है अब!


चाहतो पे ज़रूरत भारी

ख़्वाब में हक़ीक़त हावी

सुख-चैन छिन रहा सब

जबसे जिम्मेवारी आयी

बहुत उलझन में हूँ

रस्ते भटक रहे है अब!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract