कविता--माँ
कविता--माँ
माँ सिर्फ एक शब्द नहीं,
एक आकाश, एक शांति।
माँ तो प्यार का सागर, महासागर है।
पृथ्वी की सबसे प्यारी शब्द है माँ।
समस्थ आवेग ,सरलता समूह है माँ।
अंतर के गभीर से गभीर तंरग आनेवाली वे नारी है माँ।
माँ को किस किस से तूलना करो!
माँ तो प्यार और आदर का मौरत हैं।
मैं शब्दों से प्रकाश नहीं कर पायो।
ये पृथ्वी की सून्दरता देखनों को मिला है माँ से।
न महीने, कितने मूसकिलों के साथ
हमें अपने तमी में पालती है।
माँ से ही मिलती है साहस,प्रेरणा।
माँ हमारे लिए एक बड़ा वृक्ष,
जिसके शरण में लेती हूँ अमृत सकून।