कुत्ता और आदमी
कुत्ता और आदमी
हर रोज़ निकल जाता हूँ तलाश में,
किस चीज की ? नहीं पता
वो कुत्ता भी तो निकलता है
तलाश में, भोजन के
उसका लक्ष्य निर्धारित है,
मेरा अनभिज्ञ और गूढ़
कुत्ते को समान्यतः
मिल जाता हैं भोजन
पर जब नहीं मिलता तब क्या ?
वह भुखे ही सो जाता है शायद
मैं नहीं सो पाता
कहते हैं आदमी का
पेट बड़ा पापी होता है,
पर कुत्ते का पेट ? शायद नहीं
पर उस दिन वो
शायद भौंकता ज्यादा है
मैं नहीं भौंकता क्योंकि
मैंने विज्ञान पढ़ा है
भौंकने से ऊर्जा का
क्षयन होता है
ऐसा विज्ञान कहता है।
पर भौंकने से मन को
शान्ति मिलती है,
ऐसा विज्ञान ने नहीं सिखाया।
पर इसमें विज्ञान का क्या दोष ?
जीवन दर्शन सिखाने का
जिम्मा विज्ञान ने थोड़े ले रखा है।
वो तो संघर्ष से सीखना पड़ेगा।
तो लगता है कभी कभी भौंक लूं।
पर फिर लगता है कि
कुत्ते को लगेगा कि मैं
उसकी नकल कर रहा हूँ
फिर इंसान खुद को
सबसे दिमाग वाला
प्राणी कैसे कहेगा ?
कुत्ता प्यार दिखाता है,
अपने मालिक पर,
आने जाने वाले अनजान लोगों पर
और न जाने किन किन पर
पर उसके लिए ये मोहब्बत,
इश्क़ जैसे शब्द नहीं बने
ये तो केवल इंसानों के लिए बने हैं।
और ये तर्कसंगत भी है,
बेजुबान जानवर के लिए
भला शब्द कैसे बने ?
कुत्ता जागता रहता है पूरी रात,
उस बच्चे की रखवाली
करने के लिए जो
अगली सुबह उसे पत्थर मारेगा।
इंसान पूरी रात सोता है,
पर सुकून से नहीं
यकायक जाग उठता है,
बुरे सपने देखकर।
कुत्तों को बुरा सपना
नहीं आता शायद
आये भी क्यों वो तो असली जिंदगी में ही
अपने हिस्से की बुराई देख लेता है।
कुत्ता देख लेता है समाज की
हर बुराई पर इंसान उन्हें
क्यों नहीं देख पाता ?
क्या इसलिए कि इंसान उन
बुराइयों को करने में ही व्यस्त रहता है ?
चलो छोड़ों क्या
फायदा इस तुलना का
कुत्ता जीत जाएगा,
इंसान हार जाएगा
पर फायदा क्या अंत में तो
कुत्ता ही इंसान के
आगे दुम हिलाएगा।
