कुदरत की मनमानी
कुदरत की मनमानी
ये ठंडी हवा का झोंका
किए धूल को सवार,
है, खिड़की पे टकराया
शायद,सफर का हैं इज़हार
मिट्टी का वो कंड़-कंड़, हवा हो या हो पानी
पलायन को है सब, लिए अपनी कहानी
दरिया और दराख्त, कहीं पे दूर-दराज़
देख रहे है शान से, कुदरत की मनमानी।