किनारों में
किनारों में
वहां आगे जाने का सपना था,
तो चला मैं हज़ारों में
कुछ कुचलते देख अपनो को,
रह गया किनारों में !
होड़ बढ़ने की लगी थी,
तो कुछ, लग गए कतारों में
ज़िद्द बदलने की लगी थी
तो कुछ बिक गए बाजारों में
कुछ हट गए कुछ बट गए,
वक्त की दरारों में
मैं खटक रहा, जो न चला
क़िस्मत के इशारों में,
हूं लड़ रहा, और चल रहा
बच भीड़ के त्योहारों से,
हूं सर झुकाए लिख रहा
तकदीरें सितारों में !
