कुछ तो लिख दूँ
कुछ तो लिख दूँ
हर दिन सोच रहा हूँ, कुछ तो लिख दूँ
मन में जो विचार आया है, उसे पन्ने पर ढाल दूँ
पर सोचता हूं क्या और क्या लिख बैठता हूँ ?
जो वेदना ये डुबोते है मुझे, हर रोज
उन्हें उतार दूँ कोरे काग़ज़ में।
जो देते हैं मुझे, एक नया अनुभव
उन्हें सजा दूँ ह्रदय के एक कोने में
पर बह जाता है वो पल और समय के साथ
जगह लेती है कोई और ही.... नजर
कोई निशानी तो रह पाए,
पल को बाँध लूँ गुलाबी अक्षरों में
पर कुछ भी सम्भव नहीं हो पाया
हर भावना में अधूरापन लिए
आगे बढ़ जाता हूँ।
जीवन की रंगीन किताबों में
लिखना है बहुत कुछ अभी
यही सोचकर, क्यों कि,
पन्ने बहुत ही खाली पड़े हैं,
यह जिन्दगी के पथ पर
शायद उन्हें हमारी याद आए
और अधूरे पन्ने,
जिंदगी में रंगीन खुशियों से सजा पाए।
