कुछ दिन का बसेरा
कुछ दिन का बसेरा
काशी ना मेरी , काबा ना तेरा है
ये दुनिया तो पगले ‘कुछ दिन का बसेरा है ।
रह जायेंगे यही पर, यह महल ओ चौबारे
दो गज मिले जो तुझको, बस उतना ही तेरा है ।
फिर क्या मिलेगा तुझको, सब छूटेंगे यहीं पर
क्यूँ खुशियों के दामन पर ‘ मरघट का बसेरा है ।
कुछ ना मिलेगा आपस में ‘ लड़ के ओ मेरे भाई
झेलोगे तकलीफें भी, जग में होगी रुसवाई ।
फिर क्यूँ लड़ें आपस में, न कुछ तेरा है न कुछ मेरा है
क्यूंकि ये दुनिया तो पगले, कुछ दिन का बसेरा है ।