कुछ बातें
कुछ बातें


चल आज कुछ तेरे बारे में बात करता हूँ
कैसे सुबह बैठ के ही मैं दिन को रात करता हूँ
कैसे करूँ यकीन अपने साथ जो हुआ है
मैं भूल भी नहीं सकता की कल रात जो हुआ है
कैसे तूने उसको इतनी पास बुला लिया
कैसे तूने उसको बाहों में ही सुला लिया
क्या याद नहीं आई अपनी पहली रात जो थी
क्या वो भी भूल गयी अपनी हुई बात जो थी
क्यों तूने उसको एक बार भी इंकार नहीं किया
या तूने मुझ को ही कभी प्यार नहीं किया
तू बैठ तो एक पल कुछ बातें कहने दे
अब चिंता मेरी मत कर, दर्द को ऐसे ही रहने दे
कुछ पूछने है सवाल, बस उनका जवाब दे दे
कितने सपने टूट गए मेरे, उनका हिसाब दे दे
एक साल पहले क्यों मुझे पीछे से आवाज़ मारी थी
फिर हाथ पकड़ के मेरा, बात कही तूने सारी थी
रोज़ तू ही ज़िद करके मिलने को कहा करती थी
तू पूरी मुझ में थी, अकेले कहाँ रहा करती थी
पहली चिट्ठी भी प्यार की मुझ को तूने ही दी थी
हाथ से मेरे पहली चाय भी तूने ही पी थी
तू ही तो हर बात पर मेरे गाल छुआ करती थी
फिर अगर मैं रूठ जाऊँ, तो गुस्सा तू हुआ करती थी
मैं जानता हूँ बात ये तुझे चुभ रही होगी
पर तेरी मेरी दूसरी शाम भी फिर नहीं होगी
अब आँख से तेरे आँसू भी मैं रोक नहीं सकता
अब तू मेरी कहाँ रह गयी, तुझे मैं टोक नहीं सकता
तेरे से ज्यादा उम्मीद नहीं है, बस अनजान का
नाम याद रखना
मुझसे मिलने को तू भी तरसेगी, बस वो शाम
याद रखना
बस एक बात बची है जो तुझसे कहनी बाकी है
तू तो शाम तक चुप हो जाएगी, अभी आँख मेरी
बहनी बाकी है
सब कुछ तो बता दिया, तेरे चेहरे से नक़ाब भी
नहीं हटाया
तू खुद को पहचानेगी कैसे, मैंने तो तेरा नाम भी
नहीं बताया