कथनी और करनी
कथनी और करनी
कहते है मंज़िलों की आस
अनवरत प्रयास बिना अधूरी है
पर पल दो पल ठहर कर
अपनी सामर्थ्य का आकलन भी जरूरी है
यूँ तो
कहना और करना दो अलग सोच है
कभी कहना आसान तो करना मुश्किल
कभी करना आसान तो कहना मुश्किल
कहने और करने की कड़ी को
मज़बूती से जोड़ता है दायित्व
जिस दिन..
कथनी और करनी समान हो जाएं
सफल होगा आपका अस्तित्व