क्षितिज
क्षितिज
आसमान भी चहेरा देखे इतना फैला है आकार जिसका ,
उगम की गली न मिलती क्षितिज है अंबर पार उसका ,
क़यामत तक रिश्ता जुड़ा है साथ उनसे जैसे लहरों का
बहते बहते हवा भी थक जाये पता पूछे समंदर पार का।
अलग ही दुनिया रहती है समंदर की इस परछाई में,
रौशनी भी गम हो जाये जब हद पार करे गहराई में ,
खारे में भी अमृत है मिलता सुना है मंथन की लड़ाई में ,
रंगबिरंगी जीवों ने खूबसूरत रंग भरे है पानी में।
किनारों की शुरुआत जैसे छोर हो नीली चादर का,
गहरा इतना मानो मन हो ख़यालों में डूबे शायर का,
आती है लहरें किनारों पर शोर मचाएं जैसे पायल का,
जमीन भी हाथ मिलाये जैसे समंदर हो दोस्त उसका।
समां जाये दुनिया सारी उसमे पर बुझे ना प्यास किसी की,
कश्ती करे सफर जिसपर डगमगाती है चाल उसकी ,
जलभर आती नदियां सारी भरे ना गागर समंदर की,
तूफानों से भी टकरा जाये इतनी ऊँची शान है उसकी।