करवा चौथ
करवा चौथ
विषय- करवा चौथ
विधा- सरसी छंद (१६,११)
॥ॐ श्री वागीश्वर्यै नमः॥
करवा चौथ
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मनभावन संसार सजाने, रखती वह उपवास।
मन मयूर प्रमुदित हो नाचे, आनंदित हर श्वास।
शृंगार सकल अनुपम धरती, उर अटूट विश्वास।
करवा चौथ पर्व अति पावन, चित्त भरे नव हास॥१॥
पल पल बढे नेह का धागा, सजता निज संसार।
प्रेम पुष्प पुनीत नित खिलते, रचती उनसे हार ।
चंद्रमुखी सित चंद्र निहारे, फिर पिय मुख की भास।
करवा चौथ पर्व अति पावन, चित्त भरे नव हास॥२॥
चंद्र चंद्रिका निर्मल भरता, मन गाता है गीत ।
सुरभित जीवन अपना होता, बढे अमित नव प्रीत।
करवा की अनुकंपा मिलती, सब सुख बनते दास ।
करवा चौथ पर्व अति पावन, चित्त भरे नव हास॥३॥
संबंधों की ताकत बढ़ती, सुख जिनका है सार।
मधुमय मनभावन अति पावन, बहे प्रेम की धार।
निज संस्कृति नित पोषित होती पाती पूर्ण विकास।
करवा चौथ पर्व अति पावन, चित्त भरे नव हास॥४॥