सांसारिक मोह
सांसारिक मोह
दौलत छूटी, शोहरत छूटी
छुटा झूठा अहम
रिश्ते छूटे, नाते छूटे
टूटा मन का वहम
सिर्फ कफ़न खरीदने जितना
पैसा ही काम आया
न दौलत,न हीरे -मोती,
न ही जमीन जायदाद साथ लाया
जिंदगी भर दौड़ता रहा
सब कुछ छोड़ जाने को
जो ले जा सकता था ' कर्म '
वो कभी याद ही ना आया
अब सोचता है
काश किसी भूखे को खाना खिलाया होता
किसी के आंँख का आँसू पोछा होता
किसी दुखी को हंँसाया होता
किसी जरूरतमंद के कुछ काम आया होता
कैसा है ये मोह कैसी है ये माया
जो आया इस संसार में
वो इसे छोड़ ना पाया।