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Stuti Pandey

Inspirational

4.8  

Stuti Pandey

Inspirational

कर्तव्यों के नाम सती

कर्तव्यों के नाम सती

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कर्तव्यों के नाम पर कब तक ख़ुद को

सती करोगी

आदर्शों का ढकोसला बस बहुत हुआ,

कब तक मृतकों के साथ मरोगी।


सदियों से पिंजरे में रही हो, शरीर क्या अब

तो तेरी आत्मा को भी पिंजरे की आदत हो

गयी है

ध्यान से देख नज़र दौड़ा हक़ीक़त को पहचान,

तुझे यूँ ग़ुलाम बना वो बेफ़िक्री से पिंजर

खुला छोड़ गया

अब भी ज़ंजीरों में ख़ुद को जकड़े रहोगी।


चल ये आज़ाद रास्ता, नीला आसमान, ठंडी हवा

महसूस करो इसे, ये सब यक़ीनन तेरा है

ताले टूट चुके हैं, तेरे दौड़ने की देर है क्या

अब भी उससे इजाज़त लोगी।


तेरे शरीर के हर हिस्से पर कविता करी

और उसे ढक दिया

दुनिया की बुरी नज़र का ख़ुलासा किया और

तुझे क़ैद किया

ऐसे पशुओं के बीच तू आ फाँसी, क्या अब भी

उसे इंसान समझ एक और मौक़ा दोगी।।


प्रेम की परिभाषा को बदल, सुंदरता को ताक़त

का स्तंभ दे और 

पंखों को खोल, तेरी ऊँची उड़ान देख पहले

घबराएगा फिर कुछ समझेगा और फिर तेरा

मान करेगा

तुम बहु, बेटी, माँ तो रहोगी लेकिन आने

वाले समाज को एक इंसान दोगी। 


बेटे को औरत का अधिकार बता देना,

हम क्या है तू समझा देना

जब वो तुझ में और मुझ में नयन नक़्श ना

देख नरसिंभा देखेगा

तब आने वाली पीढ़ी भी जश्न करेगी।।।


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