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Sikandar Rauma

Abstract

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Sikandar Rauma

Abstract

...... करते हैं।

...... करते हैं।

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दूसरों की हँसी की वजह बनना भूल गये है,

अब तो लोग एक दूसरे पर हँसा करते हैं। 


भलाई की बात कहाँ रही अब जालिम जमाने में?

लोग उल्फत नहीं अब नफरत का नशा करते हैं। 


मक्कारों की बस्ती में मक्कारियाँ सस्ती हैं,

दागियों के बदले यहाँ बेदाग फँसा करते हैं।


न होइये इतने खुश अपनी तारीफ सुनकर, 

लोग मुस्कुराकर यहाँ तंज कसा करते हैं। 


न पिलाओ दूध उनको जो मुंह पर मीठा बोलते हैं, 

यही लोग देखकर अवसर, चुपचाप डसा करते हैं। 



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