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Sikandar Rauma

Abstract

4.5  

Sikandar Rauma

Abstract

रखा हैं।

रखा हैं।

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कोई ऊँगली न उठाए गीरेबाँ पर,

इस खौफ से हया को हिफाजत से पाल रखा है।


यूँ तो दरिंदो के बसेरों में डेरा डाल रखा हैं, 

इक तुजसे कत्ल होने को खुद को संभाल रखा है।


इज्जत शहर में चाहें निलाम कर लो हमारी,

हमने भी नजर को शर्म के पर्दे में डाल रखा हैं। 


ईल्जामात लगाते फिरोगे या मुकदमा भी चलाओगे,

कडघरे में खडा कर दो आज, कल पर क्यों टाल रखा हैं। 


झूठ सच का फैसला भी हम हि से करवाओगे,

कसम जो भी दिलवा दो, हाथ दिल पर कमाल रखा हैं। 


बिक रही है आबरू महफिल व दुकानों में,

छूपा के दिल में  हमनें मोहब्बत का माल रखा हैं। 


लूट जाये बादशाही तो मलाल क्या सिकंदर,

लैटकर खुले हाथ जनाजे पर वही जाहोजलाल रखा हैं। 


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