कॉलेज की यादें
कॉलेज की यादें
एक स्वर्णिम युग समय के साथ ठेलते ठेलते चला गया,
जहाँ जवानी का जोश व ख़ुद की अलग बनाई थी दुनियाँ,
वो कॉलेज की यादों का पिटारा मस्तिष्क में छोड़ गया।।
उस दौर में पढ़ाई लिखाई का इतना तनाव नहीं था,
नये नये कपड़े, बालों व जूतों की नुमाइश का शौक था,
कहाँ हो ? फोन नहीं था तो भय न था माँ द्वारा पूछने का।।
कॉलेज में अतिरिक्त कक्षा कह दोस्तों के साथ रखड़ना,
चुपके से कक्षा में गुठली मार कैंटीन की राह नापना,
वो यारों के साथ अड्डा बना हरी घास में बैठना।।
अतिरिक्त खर्चो के नाम से माँ से बार बार रूपये ऐंठना,
भय से तोते की तरह पापा को परीक्षा का परिणाम बताना,
फिर कोप भवन में भी माँ द्वारा पुचकार कर बुलाना।।
कुछ भूली नहीं ना कॉलेज,ना दोस्त ना वो याराना,
यादें बन मुस्कुराहट दे जाते वो पल,वो जिया हुआ हर लम्हा,
चिंता, तनाव, जिम्मेदारियों से दूर वो थी एक रंगीन दुनियाँ।।