कमज़ोर कहाँ तुम नारी
कमज़ोर कहाँ तुम नारी
कमज़ोर कहां तुम नारी, तुम कल और आज हर समय से हो भारी
इतिहास गवाह है तुम रणचंडी, रणभेरी बन दुश्मनों पर थी भारी
सीता, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती, चण्डी, काली माँ की छटा निराली
लक्ष्मीबाई, पद्मावती ,मीरा ,रज़िया , मदर टेरेसा ने अपनी छवि बनाई
नारी तुम कमज़ोर नहीं, कमज़ोरी तो कहने वालों में होती है
तुम्हारे बुलंद हौसलों से सफलता स्वयं तुम्हारे कदम चूमती है
अपना सर्वस्व कुरबान कर ममता को आँचल में पालती है
घर और बाहर दोनों जगह अपनी सर्वस्व कला निखारती है
निष्काम भाव से जीवन जीती,धरती माँ जैसा धीरज है
जन्नत इसके कदमों में, सर्वश्रेष्ठ कृति अनुपम नीरज है
संकट में न घबराने वाली परिवार की एकता इसी से है
सबके जीवन को रंगना,
धूप में छाँव देना इसका काम है
माँ ,बहन ,पत्नी और नागरिक सभी रिश्ते बख़ूबी निभाती
उफ ना करती,जलते हुए लावे पर भी सुकून से जी जाती
प्रेम , सम्मान, दया, ममता और उम्मीद ये हर पल बाँटती
कल्पना, सान्या, मैरी, पी वी सिंधु सातों आसमान छू जाती
जलती हुई धूप में भी फल और शीतल छाँव देती
सुदृढ़ दरख सी मज़बूत बनकर स्वयं कभी न ढहती
बिना रुके ज़िंदगी के वर्क पर सदैव चलती जाती
भागती दुनिया की भीड़ में ये अपनी मिसाल बनाती
अन्याय से ये सदा जूझती, बराबरी का रिश्ता पाती
कठिन तप से सबके सपनों के महल साकार करती
चाहतों के शोर उठने पर अपना अस्तित्व तलाशती
इसकी सर्वगुणसम्पन्नता से क़ुदरत भी नतमस्तक हो जाती