कलम और मैं
कलम और मैं


कलम भाग्यशाली है वह जो पाश ह्रदय के रहती है।
तुमसे मैं हूं श्रेष्ठ यही, हर पल वो मुझसे कहती है।
कर मेंकभी अधर छूती हूं, कभी कान पर जाती हूं।
अच्छे बुरे सभी ख्यालो को, मैं ही तो प्रकटाती हूं।
वलिदानो की अमर कहानी, मेरे द्वारा लिखी गई।
प्रेम वासना अन्तरद्वन्दो, अच्छाई से भेट हुई।
ऐसा कोई भाव नही, जिससे मेरी कुछ दूरी हो।
मेरे बिन सज्जन दुर्जन की, जग में न कहानी पूरी हो।
वीरो की रण हुंकार लिखी, सतियो का गौरव लिख डाला।
शोषित भिखमंगो नंगो का भी, दर्द व्यक्त है कर डाला।
चिर परिचित साथी मानव की, कोई दूर नही है करपाये।
मेरे द्वारा लिख व्यथा कथा, मन का सब बोझ उतर जाये।
जब कभी सताने लगे द्वन्द, रातो की नींद उचट जाये।
तुम मेरा कर लो थाम मित्र, दुख दूर तुम्हारा हो जाये।
कोई ठुकराये तुमको पर मै, नही कभी ठुकरा सकती।
तुमको समझे समझे न कोई, मैं सदा समझती ही रहती।
मैं जीवन साथी हूं तेरी, आजीवन साथ निभाऊँगी।
तुमको त्यागे सब जीते जी, मैं कभी नहीं तज पाऊँगी।
मरने पर भी मेरी तेरे, तन से दूरी हो जायेगी।
पर कार्य तुम्हारे करे याद सब, कीर्ति तुम्हारी छायेगी।