ख्वाब पूरे होते हैं
ख्वाब पूरे होते हैं


जब होश संभाला
खुद को बिस्तर से बंधा पाया
सभी अंग थे फिर भी कुछ कमी थी
खुद को चलने में असमर्थ पाया
सुबह शाम दिन रात बस एक विचार एक ख्वाब
ना मुझे भागना हैं ना कोई रेस जीतना हैं
मुझे मेरी मर्ज़ी से जब चाहु चलना हैं
कोशिश करती रही पर हर बार गिरती रही
वाहेगुरु से विश्वास कभी छुटा नहीं
वाहेगुरु ने भी हाथ कभी छोड़ा नहीं
चली नहीं खुद की टांगों से
ख्वाब घर से खुद बाहर जाने का था
अपनी टांगो से जाओ या व्हीलचेयर से
देख कर लोग अगर हंसते हैं तो हंसते रहो
मैं भी शामिल होगी इस हंसी में
मैं खुद चल रही सड़क में
क्यों ना खुश रहूं
क्यों ना शुक्रिया करू
ख्वाहिश मेरी पूरी हुई हैं
किसी भी तरीके से हुई हैं
वाहेगुरु मुझपर तेरी मेहर हुई हैं...